आचरणसे यश प्राप्ती और वाचासे सर्वनाश
हिंदू जनजाती कुटुंबवत्सल है. यह प्रमाण मानकर देवादिक की रचनाभी कुटुंबवत्सल है. हम ब्रम्हा, विष्णू और महेश को त्रिदेव मानते है. इन तीनो देवोंका परिवार है. सृष्टीके रचियता ब्रम्हा है. सृष्टीके पालनहार महादेव है. सृष्टीके तारणहार विष्णू है. ब्रम्हा की पत्नी सावित्री है. पूत्र दक्ष, भृगु, नारद है. विष्णूकी पत्नी लक्ष्मी है. महादेवकी पत्नी पार्वती है. पूत्र कार्तिकेय और गणेश है. इस प्रकार त्रिदेव कुटूंब वत्सल है. त्रिदेवोंकी तीनो पत्नीया माँ शक्ती का रुप है.
आजसे (दि. १ अक्तुबर २०१६) नवरात्री का हुआ है. हिंदू काल गणनानुसार वर्ष के १२ मास में चैत्र और अश्विन मास में माँ शक्ति की उपासना का पर्व हिंदू जनजाती में मनाया जाता है. हिंदू देविदेवताओंकी रचना हमारे समाज जिवनसे प्रभावित है. हिंदू जनजाती कुटुंबवत्सल है. पती, पत्नी और पुत्रादी से परिवार पूर्ण स्वरुप होता है. सामाजिक व्यवस्थाकी यह रचना हमारे देवादिकोके प्रतिको में हम अनुभवित करते है. देवादिक के पूजन का अर्थ अंधश्रध्दा नही, परंतु मानव जाती के भीतर कार्य और वर्तन से दर्शाए शौर्य, ममत्व, विश्वास और आस्था की प्रचिती है. माँ शक्ति का पूजन यह मानव जातीके शौर्य और गुणोंका पूजन है.
भारतस्थित सभी गणराज्योमें प्राचिन काल में महिला प्रधान कुटुंब पध्दती थी. इसलीए ग्राम देवता स्वरुप ग्रामदेवीकी स्थापनी की जाती थी. कुलदैवतका सन्मानभी देवीओंके पक्ष में ही जाता है. आजभी लग्नादी कार्यपश्चात कुलदेवी का दर्शन शुभाशिष माना जाता है. इन संदर्भ को हम हमारे नागरी जीवन और देवीदेवताओं की रचना को तुलनात्मक स्वरुप देखे तो देवीदेवतांओंकी रचना समाज जिवनसे प्रभावित तर्क को पुष्टी मिलती है. इसिलिए माँ शक्तिके स्थापना, उपासना और अर्चना का नवरात्रीका पर्व सभी मुहूर्त तथा शुभ कालसे अत्याधिक पवित्र और पावन माना गया है. माँ शक्ति की पूजा में हमेशा भावार्थसहीत वर्तन और हेतू सहीत वाचा का बडा ध्यान रखना होता है. वर्तनसे प्रभावित माँ शक्ति इच्छित वरदान देती है. या वाचा के अनाचार फल स्वरुप दंड देती है. विधीके विधान का यही तो मूलार्थ है.
नवरात्रि मे क्यों माँ दुर्गा की आराधना किस कारण वश की जाती है इस विषय की दो कथाएँ प्रचलित है. एक कथा के अनुसार लंका युद्ध में ब्रह्माजी ने श्रीराम से रावण-वध के लिए चंडी देवी का पूजन कर देवी को प्रसन्न करने को कहा. विधि के अनुसार चंडी पूजन और हवन हेतू दुर्लभ १०८ नीलकमल की व्यवस्था भी करा दी. वही दूसरी ओर रावण ने भी अमरत्व प्राप्त करने के लिए चंडी पाठ प्रारंभ कर दिया. यह बात पवन देव के माध्यम से इन्द्रदेव ने श्रीराम तक पहुँचायी. इधर रावण ने मायावी तरीके श्रीरामके पूजास्थल पर हवन सामग्री में से एक नीलकमल गायब करा दिया. जिससे श्रीराम की पूजा बाधित होना निश्चित था. सभी देवताओंको श्रीराम का संकल्प टूटता नजर आया. सभी में इस बात का भय व्याप्त हो गया कि कही माँ दुर्गा कुपित न हो जाएँ. तभी श्रीराम को याद आया कि उन्हें "कमल-नयन नवकंज लोचन" भी कहा जाता है. तो क्यों न एक नेत्र को वह माँ की पूजा में समर्पित कर दे. श्रीराम ने जैसे ही तूणीर से अपने नेत्र को निकालना चाहा तभी माँ दुर्गा प्रकट हुई और कहा कि वह पूजा से प्रसन्न हुई और उन्होंने विजयश्री का आशीर्वाद दिया. श्रारामने अपने आचरण और वर्तनसे माँ शक्तिका वरदान प्राप्त किया.
दुसरी तरफ रावण की पूजा के समय हनुमान जी बालक का रूप धरकर वहाँ पहूँच गए और पूजा कर रहे आचार्यों से एक श्लोक "जयादेवी...भूर्तिहरिणी.." में "हरिणी" के स्थान पर "करिणी" उच्चारित करा दिया. हरिणी का अर्थ होता है "भक्त की पीड़ा हरने वाली" और करिणी का अर्थ होता है "पीड़ा देने वाली" इससे माँ दुर्गा रावण से नाराज हो गई और रावण को श्राप दे दिया. रावण का सर्वनाश हो गया. रावणने अपनी वाचासे अपना सर्वनाश स्वीकृत किया.
नवरात्रि की उपासना का अंतिम मूलार्थ इसिप्रकार निश्चित होता है. जैसे वर्तन, आचरण या कृतीसे यशप्राप्ती उपलब्ध होती है किंतु वाचा के स्खलनसे सर्वानाश होता है
माँ शक्ति इस तथ्य को पढने वाले हर व्यक्तिको सदाचरण और वर्तन का शुभाशिष दे और वाचा को संयमित, नियंत्रित रखने का धैर्य और सामर्थ्य दे.
उपासना का सही विवरण, अभ्यास पूर्ण लेखन
ReplyDeleteडॉ स्वप्नील तोरणे
उपासना का सही विवरण, अभ्यास पूर्ण लेखन
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