Tuesday 5 April 2016

राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रभक्तीका अन्वयार्थ !

समुचे हिंदुस्तानमें ताजा और गरमागर्मीका विषय "भारत माताकी जय" इस घोषणाको लेकर चर्चामें है l विचार, संस्कार और वर्तनमें धर्मानुसार विभाजन होनेके कारण धरतीको माताका संबोधन, कहना, मानना, प्रणाम करना और उसके जयकी घोषणा करना इस कृतीसंबंधी मतभिन्नता है l इस विषयपर गंभिरतासे चिंतन करे तो राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रभक्ती इन संकल्पनाओंमेभी विचारानुरुप मतांतरे स्पष्ट होती है l किसीभी सजीवको जन्म देनेवाली धरती तथा सजीवके निवासकी भूमि हिंदू विचारधारानुसार "मातृभूमि" है l
रामायणके तर्कनुसार सीताका जन्म भूमिसे हुआ था l इसलिए सीताका एक नाम "भूमिजा" था l वैसेही हर सजिवके जन्मका कारणही धरती है ऐसा सर्व साधारण तर्क निश्चित करने पश्चात समस्त हिंदू जनसमुदाय हिंदुस्तानके धरतीको "भारतमाता" मानता है, कहता है l हर नागरिक को  "भारतमाताकी जय" घोषणासे प्रेरणा, स्फूर्ती और शक्ती मिलती है l यह घोषणा समुदायको एकत्रित और एकात्मिक रखनेका कार्यभी करती है l

"भारतमाताकी जय" घोषणापर उठे बवालसे समाजमन अस्वस्थ है l इस घोषणाको हिंदुस्तानस्थित मुस्लिम समुदायका विरोध है, ऐसा भयंकर चित्र सामान्य जनताके सामने स्थापित कर राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रभक्तीकी संकल्पनाको तोडा-मरोडा जा रहा है l किसी सजीव या निर्जीवसे प्रेम होना और उसका भक्त होना यह दोनो संकल्पनाएँ भिन्न है l व्यक्ती प्रेम किसीसेभी कर सकता है l प्रेम अंतःकरणसे होता है l प्रेम अंधाभी होता है l लेकीन किसी व्यक्ती विशेष या शक्ती का भक्त, अनुयायी होनेके लिए विचारधाराका तालमेल और स्वीकृती होना जरुरी होता है l भक्त होनेकी क्रिया मानसिक है, वो हमारे मस्तिष्कसे जुडी है l हम दुसरेको प्रेम हृदयसे करते है l किसीका देवत्व हम अनुभव, अनुभुतिसे स्वीकारते है और उसके भक्त हो जाते है l इसिलिए प्रेम हृदयसे जुडी भावनाओंका "आंदोलन" है l मात्र भक्ती दृढता, निश्चलताका "स्थीर और स्थायी भाव" है l

जब हम राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रभक्तीकी बात करते है, उस समय हमे राष्ट्रकी संकल्पना को समझना जरुरी है l वैसे राष्ट्र और राज्य इन दो अवस्थामेंभी अंतर है l जैसे भारतराष्ट्र और भारतराज्य l राज्य एक राजकीय व्यवस्था है, जो कानूनद्वारा चलती है l  कानून को प्रभावी बनाने के लिए उसके पीछे दंड देने की शक्ति रहती है l राष्ट्र याने वहाँपर निवास करनेवाले लोग l जो भिन्न भाषा, संप्रदाय, पंथ, लिंग, धर्म और विचारधारासे अलग है l मात्र, वो राष्ट्रके एकात्मिक घटक है l

इस एकात्मताके तीन पहलू है l प्रथम पहलू, जिस भूमि पर लोग रहते हैं, उस भूमि के प्रति उनकी भावना l उनको अपनी भूमि "माता" के समान पवित्र और वंदनीय लगनी चाहिए l वह 'मातृभूमि' होनी चाहिए l द्वितीय पहलू, लोगों का एक इतिहास होता है. इतिहास की घटनाएँ जैसे आनंद देने वाली होती हैं, वैसे ही दु:खदायी भी होती है l ये घटनाएँ विजयकी होती हैं, तो पराजयकी भी होती है l इन घटनांओंसे राष्ट्रका इतिहास, वर्तमान और भविष्य प्रभावित होता है l तृतिय पहलू, जब राष्ट्र एक है, निवासकी भूमि एक है तो जीवनशैलीका वर्तन समानाधिकारसे होता है l इस प्रकार राष्ट्रकी परिभाषा मातृभूमि, इतिहास और समानतासे तालमेल रखती है l

अब हम राष्ट्रको "भारतमाता" कैसे मानते है इसे समझ लेते है l भारतभूमिको माताका विशेषण पश्चिम बंगालके साहित्यसे (१८७३) दिया गया है l वंदेमातरम् की देन भी पश्चिम बंगालकी ही है l किरन चंद्र बनर्जी ने एक नाटक लिखा था जिसका शिर्षक था, "भारतमाता" l बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने "आनंदमठ" नामक कादंबरी लिखी l इस कादंबरीमें उन्होंने पहली बार "वंदेमातरम्" जैसा गीत देश को दिया। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि इसकी प्रेरणा "भारतमाता" नाटक से उन्हें मिली थी। बादमे बिपिन चंद्र पालने इसे विस्तृत रूप दिया। उन्होने "भारतमाता" को हिंदू दर्शन और आधात्मिक कार्योंसे जोडा। उन्होंने "भारतमाता" को एक विश्व और एक देश जैसे विचारों के साथ जोडना शुरू किया। "भारतमाता" की तस्वीर बनानेका श्रेय अबानींद्रनाथ टैगोरको जाता है। उन्होंने "भारतमाता" को चार भुजाओं वाली देवी दुर्गा के रूपमें दिखाया l उपरोक्त सभी संदर्भ देखे तो भारतराष्ट्रकी भूमिको "भारतमाता" का सन्मान देनेका कार्य पश्चिम बंगालस्थित साहित्य, नाट्य और चित्रकलाके माध्यमसे हुआ है l

अब वेद और पुराण के संदर्भभी देख लेते है l अथर्ववेदमे लिखा है,  "माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्या" इसका अर्थ है, भूमि हमारी माता है और हम उसके पुत्र है l विष्णू  पुराण कहता है, राष्ट्रमें रहनेवाले हर नागरिक उस राष्ट्रकी संतान है l "उत्तरे यतसमुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम, वर्षम तद भारत नाम भारती यत्र संतति" इसका अर्थ है, जो समुद्रके उत्तर और हिमालयके दक्षिणमें स्थित है वह भारत वर्ष है और वहाँके निवासी भारती यानी भारतकी संततियाँ है । अर्थात, भारतको माता मानने का विचार सनातन और वेद- पुराणके वचनोंमे उदघृत है l

इन संदर्भसे भारतीय संस्कृतीकी विचारधारा स्पष्ट होती है की, भारतीय संस्कृति प्रकृति और पृथ्वी की पूजा का ही नाम है। हमने प्रकृति को भी माँ माना और पृथ्वी को भी। अब यह विचार तबसे है जब आजकी कोई राजकीय विचारधारा अस्तित्वमें नही थी l

मातृभूमि और राष्ट्रभूमिपर मुस्लिमोंकी क्या धारएँ है उसे भी देखते है l जन्म और मातृभूमिको पवित्रताका सर्वोच्चस्थान मुहम्मद सल्ल. ने भी दिया है l उनके शत्रुओं ने जब उन्हे देश और मातृभूमि मक्कासे निकलने पर विवश किया तो उन्होने मक्का छोडते समय अपनी मातृभूमि को संबोधित करते हुए कहा “हे मक्का तू कितनी पवित्र धरती है, कितनी प्यारी है, मेरी दृष्टिमें l यदी मेरे समुदाय ने मुझे यहाँसे न निकाला होता तो मैं कदापि किसी अन्य स्थान की ओर प्रस्थान न करता।” कुरआनमें स्वयं इब्राहीम अलैहिस्सलामने प्रार्थना है और कहा है, "हे अल्लाह इस धरती को शान्ति केन्द्र बना और यहाँ के निवासियों को भोजन हेतू विभिन्न प्रकार के फल प्रदान कर l"

उपरोक्त विवेचनसे हम स्पष्ट रूपसे समझपाते है की, मातृभूमिकी पवित्रताको हिंदू धर्मग्रंथ और मुस्लिम धर्मग्रंथमे सर्वोच्चस्थान है किंतू, भूमि को माँ होनेका स्थान पश्चिम बंगालके साहित्य और कलाने दिया है l

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघके सुप्रिमो मोहनजी भागवतने दि. ३ मई २०१५ को दिये बयानमें युवाओंको "भारतमाताकी जय" केलिए सख्ती करनेकी बात कही थी l मात्र, अवकाशके बाद उन्होने २८ मार्च २०१६ को स्पष्ट किया की, "भारतमाताकी जय" सख्तीसे नही तो "ऐच्छिक" होना चाहिए" l मोहनजीका ये विधान एक व्यापक दृष्टीकोन निश्चित कर देता है l उसके बाद बवाल होना जरुरी नही l

राष्ट्रसे प्रेम होना यह संकल्पना किसीभी धर्म, जाती, लिंगके लिए स्वीकार्ह जरुर है, लेकीन राष्ट्रको भगवान, अल्लाह या गॉड समजकर उसका भक्त माननाभी भिन्न संकल्पना है l सिख समाज गुरु ग्रंथ साहबको पूज्य मानता है l गुरुनानक पवित्र विभूती है l लेकीन सिख समाज महिलाओंको पुजनिय व्यक्तिमें स्थान नही देता l सिख समाज अपने किसीभी विजयपर "वाहे गुरु का खालसा, वाहे गुरु की फतेह" यही घोषणाका उच्चारण करता है l अगर शहिद भगातसिंहके संदर्भ को सामने रखे तो "भारतमाताकी जय" का उच्चारण उन्होनेभी नही किया किंतु "इन्कलाब जिंदाबाद" यही भगतसिंहका नारा था l

विवेचनके समारोपमें मैं रास्वसंके सुप्रिमो मोहनजी भागवतकी भूमिका, "भारतमाताकी जय" यह सख्तीसे नही तो ऐच्छिक हो इस भूमिकाका समर्थन करना जरुरी है l हम राष्ट्रप्रेमी है या राष्ट्रभक्त है यह व्यक्ती विशेष गुण और स्वभावपर अवलंबित होना चाहीएँ l "भारतमाताकी जय" न बोलनेवालेको राष्ट्रप्रेमी या राष्ट्रभक्त न मानना यह अन्यायकारक है l मुखसे राष्ट्रप्रेम या राष्ट्रभक्तिकी बात करना और वर्तन राष्ट्रविरोधी करना यह भी दुर्भाग्यपूर्ण है l हर कोई नागरिक "हनुमानजी" जैसा सिना फाडकर हृदयके भितर "भारतमाता" की प्रतिमा नही दिखा सकता, वैसेही मस्तिष्कमें कुटकूटकर राष्ट्रभक्ती भरी है ऐसाभी कोई दिखा नही सकता l एक बातपर सहमती हो सकती है, राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रभक्ति व्यक्तिसापेक्ष जरुर है किंतु राष्ट्रद्रोह, राष्ट्रविघटन और राष्ट्रविनाशकी संभावना रखनेवालोंको भारतीय भूमिको माता कहने का और भारतभूमिपर निवास का भी अधिकार नही l उनको देशसे निष्काषीत करनाही उचित है l किसी एक घोषणाके उच्चारण और मना करनेसे राष्ट्रप्रेम या राष्ट्रभक्तीके मापदंड निर्माण करना समस्त समाजकेलिए घातक और समाजको विभाजीत करनेवाला हो सकता है l फिलहालतो यही संकेत जादा नजर आ रहे है l
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उपरोक्त लेखनके लिए संग्रहीत संदर्भकी सूची  -

१) २ अक्टुबर २०१४ - बीबीसी - धर्म और राष्ट्र पर क्या कहता है संघ?
लिंक -
www.bbc.com/hindi/india/2014/10/141011_rss_concept_nation_state_tk
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२) ४ अगस्ट २०१५ - आनंद लहर - अपने देश को ‘मातृभूमि’ क्यों कहते हैं; ‘पितृभूमि’ क्यों नहीं कहते?
लिंक -
isha.sadhguru.org/blog/hi/sadhguru/apne-desh-ko-matrubhoomi-kyon-kehte-heinpitrubhumi-kyon-nahi/
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३) ३० मार्च २०१६ - द सिटीझन - Why Did RSS Chief Bhagwat Change His Mind On Bharat Mata Ki Jai? 3 Reasons -
लिंक  -
 www.thecitizen.in/index.php/NewsDetail/index/1/7276/Why-Did-RSS-Chief-Bhagwat-Change-His-Mind-On-Bharat-Mata-Ki-Jai-3-Reasons
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४) ५ एप्रील २०१६ - इस्लामी जीवन व्यवस्था - देश प्रेमः इस्लाम के दर्पण में
लिंक -
isha.sadhguru.org/blog/hi/sadhguru/apne-desh-ko-matrubhoomi-kyon-kehte-heinpitrubhumi-kyon-nahi
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५) मिक्सफ़्लिक्स - देशभक्ति में डूबे नारों का इतिहास!
लिंक -
www.newsflicks.com/hindi/story/be-a-nationalist-hindi






2 comments:

  1. छान, संदर्भासह दिल्याने अधिकच खास.

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  2. छान, संदर्भासह दिल्याने अधिकच खास.

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