Monday, 25 May 2015

हमारे ‘बापू’ की कहानी

(हमारे पिताजी तथा बापू श्री. केशवलाल तिवारी इनका आज दि. २५ मे २०१५ का जन्मदिन. उम्रके ७८ साल पुरे कर बापू ७९ वे सालमें प्रवेश कर रहे है. उनकेप्रति मेरी भावनाएँ)
दरणिय पिताजी तथा बापू आपको जन्मदिनकी बहुतसारी शुभकामनाएँ. हमारी माँ सौ. मनोरमा इनका जैसे ‘माँसे आई होनेका सफर’ रहा है वैसेही आपका ‘पिताजीसे बडेभय्या और बडेभय्यासे बापू होनेका सफर है’ लेकिन इतसप चर्चा फिर कभी करूंगा.
आपको जन्मदिनकी बधाई देनेके पहले आज सुबहसे मै सोच रहा था, गुजरे हुए २०-२५ सालोंमें आपने मुझे कब-कब दाटा? इस प्रश्‍नको लेकर मैं व्यक्तिगत तौरपर अस्वस्थ था. मनुष्य स्वभावकी विशेषता है, हम अपनोंकेसाथ गुजारेहुए अच्छेपल, या अपनोंका अच्छा-ममत्वभरा बर्ताव अल्प समयकेलिए याद रखते है, लेकिन किसीका दूर्रव्यवहार या गैरबर्ताव हम हमेशाकेलिए याद रखते है. इसप्रकारकी वेदनादायी याँदे बडीही तकलिफ देय होती है. वो स्वभावका ‘नासूर’ भी बन जाती है.



All Keshvlal and Manorama Tiwari's Family from Bhadgaon
मै भी सोच रहा था के, बापूने मुझे कब-कब दाटा है? प्रश्‍न खुदकोही अंतर्मूख करनेवाला था. मै यादोंको पिछे-बहुतही पिछे लेकर गया. लेकिन मेरी ४७ सालकी उमरमें बापू आपने मुझे डाटा हो या, कभी आप मुझसे नाराज हुए हो ऐसा किसीभी प्रकारका किस्सा मेरे स्मरणमें नही आया.
बापू, शायद सन १९८३ की बात है. मै १२ की विज्ञान शाखासे फेल हुआ था. रिझल्ट का अंदाजा होनेसे मै कॉलेज गया नही था. आप कॉलेजसे मेरी मार्कलिस्ट लेकर घरपर आए. आपने लिस्ट मेरे हातोंमे रखदी और हसकर कहा, ‘तूम फेल हुए हो. चलो आक्टोबरमें फिरसे एक्झाम दे देना!’ उस वक्त दादाजी आ. भाऊलाल तिवारीजी भी थे. उन्होने मुझे उपर बुलाया और घरमें सभी सदस्यको कहा, ‘दिलीपको कोई कुछ नही बोलेगा’. मेरे इसप्रकारे शैक्षणिक अपयश को आपने बडेही संयमसे संभाला. मुंबईमें ‘बीएफए’ करनेका प्रस्ताव आपने रखा. आप, आ. राजाभाऊ मोहरीरसर मेरे साथ मुंबईके ‘सर जे जे स्कूल ऑफ आर्ट’ मेंभी पहूँचे. वहापर प्रवेश नही हुआ लेकिन, औरंगाबादमें शासकिय कला महाविद्यालयमें मैंने बीएफएकेलिए प्रवेश लिया. मेरे शिक्षणके दौरान आप पाँच साल कभी औरंगाबाद नही आए लेकीन चाचाजी आ. प्रकाशनाना और उनकेप्ररम स्नेही आ. कांतिलाल चव्हाण इन्होने मेरा खयाल रखा. समयपर आर्थिक मदतभी की.
मै आज मेरे प्रोफेश्‍नलाईफमें जहाँ कही भी पहूँच पाया हूँ उसकी निंव आपके सूझाव अनुसार चुने हुए अभ्यासक्रमको है, इसका मुझे हमेशा ध्यान  है और रहेगा.
मेरे बाद शैलेशके १२ वी के शैक्षणिक अवस्थामेंभी प्रश्‍न निर्माण हुआ था. पूणेके ‘कुस्रो वाडिया कॉलेज’ से पुरा सामान लपेटकर और शैक्षणिक शुल्क वापस लेकर शैलेश घरपे लौट आया था. उस वक्तभी आप चिंतीत थे लेकिन आपने एक शब्दभी शैलेश को कुछ कहा नही. रातमेंही आ. प्रकाशनाना और उनके परमस्नेही आ. जनार्दनअण्णा जाधव शैलेशको लेकर पूणे पहूँचे. दुसरेदिन उसका ‘रिएडमिशन’ करवाया.
अरविंदके शैक्षणिक व्यवस्थाकी कहानीभी कुछ इस प्रकारकीही है. अरविंदने १२ वी विज्ञान शाखामें प्रवेश लेना चाहिए ऐसा आपका मत था. लेकिन, अरविंद ‘एलएलबी’को एडमिशन लेकर आया. आपने कभी एक शब्दसे उसकेपर अपने विचारेंको नही लादा. योगिताको अपेक्षा ना होते हुएभी ‘बीपीएड’ करवाया. आपका विरोध था लेकिन, मै और आईके आग्रह कारण योगिता बीपीएड हो गयी.
बापू, मुझे याद है, मेरी शादीके लिए लडकी देखने मैं, बुआ सौ. निर्मलाबाई मिसर (पारोला) और आई हम तीन लोग वाशीममें स्व. शंकरप्रसाद अवस्थीजीके यहाँपर गये थे. सरोजकी पसंतीका निर्णय हम लोगोंने वापसीमें किया था. बुवाने भडगाव पहूँचतेही अवस्थी परिवारको निर्णय बताभी दिया था. आपने और योगिता वगैरे सारे परिवारने सरोजको विवाहके मुहूर्तपरही पहलीबार देखा.
बापू, आपने मेरी कई गलतियोंपे हमेशा ‘मौन’ रखा. आई कुछ ना कुछ बोलकर मन हलका कर लेती थी और आजभी बोल देती है. लेकीन, आपने कभी किसी दुसरोंके सामने मेरा ‘मानभंग’ नही किया. आपकी खामोशी मेरेलिए ‘सपोर्ट’ नही थी. लेकिन, आपके अस्वस्थ होनेका इशारा जरूर थी. मेरा शैलेशकेसाथ विवाद, मेरा अरविंदसे हुआ झगडा या फिर मेरी योगितासेहुई अनबनसी नारजागीसे आप अस्वस्थ और चिंतीत जरूर होते थे. लेकिन, आप किसीका पक्ष नही लेते थे. ना ही आप किसीका समर्थन करते थे.
बापू, लेकिन आज मै अपने पूत्र चि. रोहितके मेरे और सौ. सरोजकोप्रति कभीकभारके व्यवहारसे अस्वस्थ हो जाता हूँ. तब, तीव्रतासे महसूस करता हूँ के, मै अपने  बचपनमें बापूके प्रति किताना गलत और दुर्रव्यवहार किया है. शायद, हर आदमी इस भावनांओंको खुद पिता होनेके बादही महसूस करता है.
बापू, एक बात जरूर कहूँगा, बडा पूत्र होनेको लाभभी बहुत सारे है और कुछ नुकसानदायी बाते भी है.
बडा पूत्र होनेसे कुटुंबके सभी सदस्योंके व्यवहारको हम छोटी उमरमें समझ पाते है. उसके परिणाम हमारे स्वभावविशेषका कारण बन जाते है. कडवापन वहीसे प्राप्त होता है. शायद, आपके स्वभावका ‘स्थायी मौन’ दादाजीके कठोर और निग्रही वर्तन-व्यवहारसे था. आप दादाजीसे उलझकर बात नही करते थे. मौन रहते थे. लेकीन, मैं बचपनसे दादाजीके पास रहा, उनके स्वभावको नजदिकसे देखा-परखा. बहुतसारे कटू प्रसंगोंने दादाजींको निःशब्द किया. बहुतबार कई प्रसंगोंने अकेलेमें दादाजीको रुलाया. मैने वो देखा है. शायद-शायद दादाजीके संस्कार लेकर मै कर्म-कठोर हो गया हूँ. हरएक प्रसंगमें ‘मैं निर्णय ले सकता हूँ’ और आप ‘चिंचीत होकर केवल मौन रहते है’
बापू, आपने कभी मुझे दाटा नही लेकीन आपने मुझे समय-समयपर सावधान जरूर किया है. जबभी हम लोग एकेलेमें मिले है, आपने सभ्यतासे मेरे गलत निर्णययोंके बारेमें स्पष्टतासे समझाया है. कुटूंबके दुसरे सदस्य इस बातको नही जानते.
बापू, मुझे एक बातकी हमेशा खुशी है की, मैं कुटुंबकेसभी सदस्योंसे कभीनाकभी कठोर व्यवहार कर चूका हूँ, लेकीन...लेकीन सभी सदस्य मेरे बडेहोनका सन्मान और आदर आजभी करते है. इसमें शैलेश, अरविंद और योगिताका परिवारभी है. हमारे दामाद राजेंद्र दुबेभी मुझसे उलझते नही. मुझे बडा अच्छा लगता है. ये आप और आईके संस्कार है, इसकी समझ मुझे हमेशासे है.
बापू, मेरी नोकरीके हर तरक्की और बदलावको आपने हमेशा सहारा है. मुझे हमेशा ‘टॉपपर’ रहनेकी प्रेरणा दी है. आप और आई हमेशा मेरे साथ रहे है. मुझे प्राप्त हर पुरस्कारको आपने कौतुकसेभरी निगाहोंसे देखा है, सहारा है.
बापू, दादाजी और आपके किताबे पढनेका शौक मुझे बचपनसे है. उसकी बदौलत ‘मेरी मराठी’ दुसरोंसे जरूर अच्छी है.
बापू, मुझे आपके साथ चलनेमें बडा आनंद आता है. जबभी आप मेरे साथ चलते हो और मे आपको कंधेपर ‘दोस्त’ के जैसा हात रख देता हूँ उसवक्त मुझे बडा गर्व महसूस होता है. दुनियाकी सारी उँचाई उस वक्त मुझे छोटी लगती है.
बापू, मैं माँ भगवतीसे प्रार्थना करूंगा, मेरा हात आपके कंधेपर दीर्घ समय रखनेकेलिए वो आपको निरामय, निरोगी और दीर्घायुष्य जरूर दे. बापू, आज आपके मौन का अन्वयार्थ ढुंढनेकी कोशिश की है, आपका पूत्र होनेपर मुझे गर्व है...

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